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ए हिंदू, तेरा घूंघट!

  • Writer: Nivedita Shukla
    Nivedita Shukla
  • Feb 3, 2023
  • 1 min read


तेरा घूंघट सरका जा रहा है,

ज़रा आबरू तो संभाल,

सबको चेहरा दिखा रही है

तेरी कैसी ये मजाल?

खींचा घूंघट नीचे अपना

देखा हर ओर,

कहीं देख तो नहीं लिया किसी ने मुझे

तोड़ते मर्यादा की डोर?

फिर सोचा घूंघट आया कब था?

न डाला मेरी देवियों ने जब था प्राचीन काल,

न था ये उन वर्षों में जब था जैन और बुद्ध काल|

क्यों फैल गया ये उत्तर भारत में

क्यों रहा नहीं दक्षिण पर इसका प्रभाव?

क्यों ये पर्दा मेरा बन गया,

जब था नहीं इसका सरोकार?

आया ये जब वो मुग़ल आये

थी नारी जिनके लिए संपत्ति,

जो नारी घूमे अर्धनग्न

उसे उठाने में कैसी आपत्ति?

खैर मैंने घूंघट अपना लिया,

बना लिया अपना सम्मान,

बड़ों के लिए आदर बन गया

रूप को दिया श्रृंगार |

मुझे दकियानूसी कहते हो

अपनी औरत को अब भी भय में रखते हो?

अपनी नज़र की मक्कारी का

इलज़ाम उनके सर मढ़ते हो?

वो समय पुराने लद गए

लड़के लड़कियों से पिछड़ गए,

पर तुम अब भी बेटियों को ढकते हो,

परदे को उनके पहले रखते हो |

पढ़ने दो, भागने दो चाँद तक

करने दो पर्दा,

पर देखो, कहीं बीच में न आये

तालीम के अंजाम तक |


 
 
 

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1 Comment


ratna.shukla
Feb 04, 2023

Very beautiful

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